ये उन दिनों की बात है जब ऑनलाइन कार्य नहीं होते थे।राजीव को अपने मित्र के लिये तत्काल केटेगरी में पासपोर्ट बनवाने के लिये पासपोर्ट ऑफिस जाना हुआ।

लाइन में लग कर उसने पासपोर्ट का तत्काल फार्म लिया, फार्म भर लिया, काफी समय हो चुका था अब उसे पासपोर्ट की फीस जमा करनी थी।
लेकिन जैसे ही उसका नंबर आया क्लर्क ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा।

राजीव ने क्लर्क से मिन्नतें की, उससे कहा कि आज मैंने अपने ऑफिस से केवल इसी काम के लिये छुट्टी ली है, पूरा दिन मैंने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, प्लीज फीस ले लीजिए।

क्लर्क बिगड़ गया।
कहने लगा, “आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या?
अरे स्टाफ कम है तो गवर्नमेंट ज्यादा लोगों को भर्ती करे।
मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।”

एक बार राजीव मायूस हुआ और उसने सोचा कि चलो अब कल आऊँगा। फिर अचानक उसके अंदर की आवाज़ ने उसे रोका, कहा कि रुको एक और कोशिश करके देखो।

क्लर्क अपना टिफ़िन का बैग लेकर उठ चुका था। राजीव ने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया।

वो एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने बैग से टिफ़िन बॉक्स निकाला और पानी लेने के लिए उठने को था तभी राजीव ने कहा – “लाइए मैं आपकी बोतल पानी से भर लाता हूँ।”

वह मना करता उससे पहले राजीव ने उसके हाथ से बोतल ले ली और वाटर कूलर से पानी भरने चल दिया।पानी की बोतल टेबल पर रखने के साथ राजीव ने भी अपने बैठने के लिये क्लर्क से आग्रह किया।

उसके बाद उसने क्लर्क से बात करने का प्रयास करते हुए अपना परिचय आत्मीयता के साथ दिया। राजीव की मधुरवाणी से क्लर्क के तनावपूर्ण भाव उसकी  मुस्कुराहट में घुल गए  और क्लर्क ने भी अपना परिचय दिया कि मैं राज किशोर हूँ, मैं यहाँ पिछले 17 साल से काम कर रहा हूँ।

राजीव –  “आपके पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे?”
राज किशोर ने बड़े गर्व से कहा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं।
कई बड़े अधिकारी, व्यापारी, डॉक्टर, विधायक रोज यहां आते हैं।
मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं।

रिश्ते

फिर राजीव ने कैंटीन काउंटर से अपने लिये लंच लिया और राज किशोर से पूछा कि क्या मैं आपकी टेबल पर आपके साथ बैठकर लंच कर सकता हूँ ?

जवाब मिला – हाँ ज़रूर

राज किशोर ने राजीव को अपने टिफ़िन से शेयर करने के लिए अपना टिफ़िन आगे बढ़ा दिया।

राजीव ने कहा- “सर आप बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हैँ बड़े-बड़े लोग आपके पास आते हैं।
तो क्या आप अपनी कुर्सी की इज्जत करते हैं? आप बहुत भाग्यशाली हो, आपको इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, लेकिन आप अपने पद की इज्जत नहीं करते।”

उसने राजीव पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने?

राजीव ने कहा कि आपको जो काम दिया गया है अगर आप उसकी इज्जत करते तो इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते।

देखिये आपका कोई दोस्त भी नहीं है। आप दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हैं, लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हैं।

पता नहीं कितनी दूर से लोग अपने अन्य काम छोड़कर आते है और आपसे अनुरोध करते हैं और आप कहते हैं –
“स्टाफ कम है तो गवर्नमेंट ज्यादा लोगों को भर्ती करे।”
अरे ज्यादा लोगों के बहाल होने से तो आपकी अहमियत घट जाएगी? हो सकता है आपसे ये काम ही ले लिया जाए।

भगवान ने आपको मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए।
लेकिन अपना दुर्भाग्य देखिये, आप इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हैं।
मेरा क्या है, कल आ जाऊँगा या परसों आ जाऊँगा।

पर आपके पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का, आप उससे चूक गए।

राजीव ने क्लर्क से कहा कि पैसे तो बहुत कमा लेंगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है।
क्या करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे, यार दोस्त तो पहले से ही नहीं हैं

राजीव की बात सुन कर वो रुआँसा हो गया।
उसने कहा कि आपने बात सही कही है। मैं अकेला हूं।

राज किशोर को अहसास हुआ कि मेरे व्यव्हार में जो कठोरता आ गई है उससे मेरे मित्र नहीं है। जीवन के प्रति मेरा उत्साह नहीं रहा जिससे मैं अपने परिवार के सदस्यों से भी मधुरता नहीं रही।
पत्नी नाराज़ होकर मायके चली गई है।बच्चे भी मुझसे डरते हैं। उन्हें मेरी अनुपस्थिति ज्यादा भाती है।
मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती।
सुबह खाना बना कर दे देती है, और मैं बुझे मन से खाना खाता हूं। रात में घर जाने का भी मन नहीं करता।
समझ में नहीं आता कि गड़बड़ी कहां है?

राजीव ने शांत भाव से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते तो तो करो।
देखो मैं यहां अपने मित्र के पासपोर्ट के लिए आया हूं।
मेरे पास तो पासपोर्ट है।  निस्वार्थ भाव से मैंने मित्र की खातिर अपना समय लगाया यहाँ आया । इसलिए मेरे पास मित्र हैं, आपके पास नहीं हैं।

राज किशोर उठा और उसने राजीव से कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा, और उसने काम कर दिया।
फिर उसने राजीव का फोन नंबर मांगा, और उसे बहुत ही आशावादी और आभार दृष्टि से देखा।

कुछ साल बीत गए…

गुरू पूर्णिमा पर राजीव को एक फोन आया…
, कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ लंच किया था।
आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।
राजीव को तुरंत याद आया, कहा – अच्छा राज किशोर जी,हाँ बिलकुल मुझे याद है।
राज किशोर ने खुश होकर कहा-“राजीव जी आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा।
मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता।”

मैं अगले ही दिन पत्नी के मायके गया। मैंने उसे बताया – मुझे अहसास हो गया है,  कि अगर मैं पैसा कमाकर लाता था, तो हमारे परिवार के रिश्ते तो तुमने ही सहेजे हैं। असली कमाई तो वही है।

नात रिश्तेदार आने पर सबको खिलाना उनका हालचाल लेते रहना जिससे हमारे परिवार की प्रतिष्ठा बनी है उसमें मुझसे ज्यादा मेरी जीवन संगिनी का ही योगदान है। मैं  तुम्हारा आभारी हूँ। अब घर चलो और मुझे माफ़ कर दो।
वो हैरान थी। रोने लगी।
मेरे साथ चली आई।
बच्चे भी साथ चले आए।

राजीव जी, अब मैं पैसे तो कमाता ही हूँ और रिश्ते भी कमाता हूं।
जो आता है उसका काम कर देता हूं।

राजीव जी आज आपको हैप्पी गुरू पूर्णिमा बोलने के लिए फोन किया है।

वो बोलता जा रहा था, राजीव सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता इतना भारी पड़ेगा।

ये कहानी हमें ये बताती है कि, हमें पैसा कमाने के आलावा रिश्ते भी कमाने पड़ते हैं। इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं बस दूसरों से हँस के बोल दीजिए। उनके सुख दुःख में शामिल हो जाइये।

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